Saturday 5 August 2017

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एम जी सर,

कैसे बेदिल इंसान हो आप
हाँ, यही लगा आज मुझे सुबह टहलते हुए
कितना अस्वस्थ लग रहा था
फेफड़ों में इतना सारा ऑक्सिजन भरने के बाद
बाहर खड़ी कार का एक्झॉस्ट चला सकते हो क्या?
साँसों में थोड़ा कार्बन डाय आक्साईड भर दूँ
शायद ठीक लगेगा मुझे

आज गया था दूर वादियों में कहीं
सूखें पत्ते चुभ रहे थे मुझे
स्पोर्ट्स शूज़ के सोल को छेदते हुए
कोई फूलों की सुगंध नाक में टटोलते हुए निकल पड़ी
यहाँ कोई कचरा ले जाने वाले ट्रक की व्यवस्था नहीं कर सकते क्या, एम जी सर !

और ये आवाज़ पंछियों की
कैसा ग़लत लग रहा था कानो को ये सुरीलापन
कैसे जीते है यहाँ के लोग
लाउड्स्पीकर की बेसुरी आवाज़ में अपने अपने भगवान को ना पुकारते हुए
ताजूब लग रहा है मुझे

और ताज़ुब लग रहा है मुझे इस बात का भी
ऐसे भी जीता है कोई सत्तर साल का एक नौजवान ?
बीस एकर में फैली हुई एक बंजर ज़मीन को हरे खेती से भरकर
अपने पोते पोती की उम्र कि बच्चों को खाना परोसते हुए
आनंद पाकर ख़ुद तृप्ति की डकार लेते हुए

और ये क्या लगा दिया आपने कि इसके समा जाइए उसको अपने गले लगा लीजिए
कल के ब्रेक्फ़स्ट में पापाजी से कहके
थोड़ा अहंभाव, ज़रा चिड़चिड़ापन हमें परोसिए
तो हम तैयार हो जाएँगे रोज़मरा ज़िंदगी जीने के लिए

क्या एम जी सर
ये कहा लेकर आगये आप हमें
जीते जी आपने तो हमें स्वर्ग ही दिखा दिया

कैसे बेदिल इंसान हो आप ?
एम जी सर

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